caste census 2021 Archives - Pravartak Bharat https://pravartakbharat.com/tag/caste-census-2021/ My WordPress Blog Fri, 20 Jan 2023 04:52:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 Caste Census: 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं. पढ़े खास रिपोर्ट https://pravartakbharat.com/2023/01/20/888-ongsgt/ https://pravartakbharat.com/2023/01/20/888-ongsgt/#respond Fri, 20 Jan 2023 04:52:00 +0000 https://thebharat.net/2011-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%97%e0%a4%a3%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%86%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%a1%e0%a4%bc/ Caste Census: जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है. इसके कुछ ही महीने पहले साल 2021 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र […]

The post Caste Census: 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं. पढ़े खास रिपोर्ट appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
Caste Census: जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है. इसके कुछ ही महीने पहले साल 2021 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र में केंद्र ने कहा था कि ‘साल 2011 में जो सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई, उसमें कई कमियां थीं. इसमें जो आंकड़े हासिल हुए थे वे ग़लतियों से भरे और अनुपयोगी थे.

भारत में 1931 में हुई पहली जनगणना

केंद्र का कहना था कि जहां भारत में 1931 में हुई पहली जनगणना में देश में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी वहीं 2011 में हुई जाति जनगणना के बाद देश में जो कुल जातियों की संख्या निकली वो 46 लाख से भी ज़्यादा थी. 2011 में की गई जातिगत जनगणना में मिले आंकड़ों में से महाराष्ट्र की मिसाल देते हुए केंद्र ने कहा कि जहां महाराष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अधिसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी में आने वाली जातियों कि संख्या 494 थी, वहीं 2011 में हुई जातिगत जनगणना में इस राज्य में कुल जातियों की संख्या 4,28,677 पाई गई.

साथ ही केंद्र सरकार का कहना था कि जातिगत जनगणना करवाना प्रशासनिक रूप से कठिन है. प्रोफ़ेसर सतीश देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं और एक जाने माने समाजशास्त्री हैं.

सतीश देशपांडे बताते हैं

“राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना तो देर सवेर होनी ही है, लेकिन सवाल ये है कि इसे कब तक रोका जा सकता है. राज्य कई तरह की अपेक्षाओं के साथ ये जातिगत जनगणना कर रहे हैं. कभी-कभी जब उनकी राजनीतिक अपेक्षाएं सही नहीं उतरती हैं, तो कई बार इस तरह की जनगणना से मिले आंकड़ों को सार्वजानिक नहीं किया जाता है.

कर्नाटक में की गई जातिगत जनगणना का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं

“ये जातिगत जनगणना काफी शिद्दत से की गई. तकनीकी तौर पर ये अच्छी जनगणना थी. लेकिन उसके आंकड़े अभी तक सार्वजानिक नहीं हुए हैं. ये मामला राजनीतिक दांव-पेंच में अटक गया. किसी गुट को लगता है उसे फ़ायदा होगा और किसी अन्य गुट को लगता है कि उनका नुक़सान हो जाएगा.

इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में कार्यरत प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण कहते हैं

“जो पार्टियां जातिगत जनगणना करके भी उसके आंकड़े सामने नहीं लाती हैं, तो उसकी वजह या तो कोई भय होगा या आंकड़ों में रहा कोई अधूरापन होगा. बहुत सारी जातियों ने जो सोशल मोबिलिटी ने हासिल की है, उनकी श्रेणियों को निर्धारित करना इतना आसान भी नहीं है. बहुत सारे विवादों से बचने के लिए भी शायद आंकड़े सामने नहीं लाये जाते होंगे.

प्रोफ़ेसर देशपांडे के मुताबिक़

Caste Census: ये कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा “लेकिन जातिगत जनगणना की मांग एक जायज़ मांग है और इस पर अमल किया जाना चाहिए. वे कहते हैं, “जातिगत जनगणना करवाने में जो तकनीकी अवरोध बताये जाते हैं वो सिर्फ़ अटकलबाज़ी है. जटिल चीज़ों की गणना हमारे सेन्सस के लिए कोई नई बात नहीं है. तकनीकी तौर पर ये पूरी तरह से संभव है. साल 2001 में सेन्सस कमिश्नर रहे डॉक्टर विजयानून्नी ने बड़े साफ़ तौर पर कहा है कि जो जनगणना करने का तंत्र है वो इस तरह की जनगणना करने में सक्षम है.

The post Caste Census: 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं. पढ़े खास रिपोर्ट appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
https://pravartakbharat.com/2023/01/20/888-ongsgt/feed/ 0
Caste Census: जातिगत जनगणना: संविधान का उल्लंघन या वक़्त की ज़रूरत: पढ़े खास रिपोर्ट https://pravartakbharat.com/2023/01/20/889-rqshdy/ https://pravartakbharat.com/2023/01/20/889-rqshdy/#respond Fri, 20 Jan 2023 04:34:00 +0000 https://thebharat.net/%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%97%e0%a4%a3%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be/ Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला पिछले साल जून में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना करवाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी. दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा […]

The post Caste Census: जातिगत जनगणना: संविधान का उल्लंघन या वक़्त की ज़रूरत: पढ़े खास रिपोर्ट appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला पिछले साल जून में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना करवाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी. दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके दूसरे चरण में बिहार में रहने वाले लोगों की जाति, उप-जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी जानकारियां जुटाई जाएँगी.

लेकिन बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना को चुनौती देती हुई एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जिसके ऊपर पहली सुनवाई 20 जनवरी को मुक़र्रर की गई है. इस जनहित याचिका में बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना को रद्द करने की मांग की गई है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है क्योंकि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की पहली सूची में आता है और इसलिए इस तरह की जनगणना को कराने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है.

जातिगत जनगणना का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी. अंग्रेज़ों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज़ किया गया. आज़ादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया.

तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज़ किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि क़ानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.

मंडल कमीशन का गठन

हालात तब बदले जब 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी. इन दलों ने राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया. साल 1979 में भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था.

मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश

मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की. लेकिन इस सिफ़ारिश को 1990 में ही जाकर लागू किया जा सका. इसके बाद देश भर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए. चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए. आख़िरकार साल 2010 में जब एक बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए राज़ी होना पड़ा.

Caste Census: 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई तो गई, लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े कभी सार्वजानिक नहीं किए गए. इसी तरह साल 2015 में कर्नाटक में जातिगत जनगणना करवाई गई. लेकिन इसमें हासिल किए गए आंकड़े भी कभी सार्वजानिक नहीं किए गए.

The post Caste Census: जातिगत जनगणना: संविधान का उल्लंघन या वक़्त की ज़रूरत: पढ़े खास रिपोर्ट appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
https://pravartakbharat.com/2023/01/20/889-rqshdy/feed/ 0
Cast Census: माले ने उठाई मांग: जाति के साथ उपजाति की भी गिनती करे सरकार https://pravartakbharat.com/2023/01/08/896-dsawdc/ https://pravartakbharat.com/2023/01/08/896-dsawdc/#respond Sun, 08 Jan 2023 14:28:00 +0000 https://thebharat.net/%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%a0%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b8/ Cast Census: पटना,  भाकपा- माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि बिहार में शुरू हुई जाति गणना स्वागतयोग्य कदम है. बिहार के सभी दलों ने पूरे देश में जाति गणना की मांग प्रधानमंत्री से की थी और एक प्रतिनिधिमंडल भी उनसे मिला था, लेकिन उन्होंने इस मांग को ठुकरा दिया. भाजपा शुरू से ही […]

The post Cast Census: माले ने उठाई मांग: जाति के साथ उपजाति की भी गिनती करे सरकार appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
Cast Census: पटना,  भाकपा- माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि बिहार में शुरू हुई जाति गणना स्वागतयोग्य कदम है. बिहार के सभी दलों ने पूरे देश में जाति गणना की मांग प्रधानमंत्री से की थी और एक प्रतिनिधिमंडल भी उनसे मिला था, लेकिन उन्होंने इस मांग को ठुकरा दिया.

भाजपा शुरू से ही जाति गणना की विरोधी रही है

भाजपा शुरू से ही जाति गणना की विरोधी रही है. इसीलिए उसके नेता बौखलाहट में बयान दे रहे हैं. बिहार की इस पहल का पूरे देश में विस्तार होना चाहिए. यदि भाजपा वाले जाति गणना के पक्षधर हैं तो वे क्यों नहीं पूरे देश में जाति गणना करवा रहे हैं? उन्होंने कहा कि जाति गणना से वास्तविक सामाजिक-आर्थिक व अन्य स्थितियों का पता लगेगा और फिर तदनुरूप विकास संबंधी योजनाओं की नीतियां बनाई जा सकेंगी.

जातियों / उपजातियों की गणना होनी चाहिए

उन्होंने यह भी कहा कि जाति गणना में सभी धर्म-जाति संप्रदाय की जातियों / उपजातियों की गणना होनी चाहिए. बिहार में कई ऐसी जातियां हैं जिनकी जाति का निर्धारण अभी तक नहीं हो सका है. खासकर मुस्लिम समुदाय में ऐसी कई जातियां हैं. माले राज्य सचिव ने कहा कि जाति गणना तो शुरू हो चुकी है, लेकिन बिहार में जो भी सर्वेक्षण होते रहे हैं, वे भारी त्रुटियों के शिकार रहे हैं. 2011 का सर्वेक्षण इसका उदाहरण रहा है. अतः इस बात की गारंटी की जानी चाहिए कि जाति गणना त्रुटिहीन हो.

Cast Census: पहले चरण में सरकार मकान का नंबर निर्धारण का काम रही है. बहुत सारे गरीब परिवार आवासविहीन हैं. वे झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं. अतः सरकार को जाति के साथ-साथ यह प्रश्न भी पूछना चाहिए कि जिस जमीन पर वे बसे हैं, वह जमीन उनकी है अथवा नहीं? उन्होंने कहा कि शिक्षकों को गैरशैक्षणिक कार्य में लगाना कहीं से भी उचित नहीं है. इससे पठन-पाठन की क्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है. जाति गणना के लिए सरकार को वैकल्पिक रास्तों की तलाश करनी चाहिए.

The post Cast Census: माले ने उठाई मांग: जाति के साथ उपजाति की भी गिनती करे सरकार appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
https://pravartakbharat.com/2023/01/08/896-dsawdc/feed/ 0
Caste Census: जाति जनगणना क्यों ज़रूरी है? किस बात से डरती हैं केंद्र सरकार? .. समझें पूरा गणित https://pravartakbharat.com/2023/01/08/898-xrkuks/ https://pravartakbharat.com/2023/01/08/898-xrkuks/#respond Sun, 08 Jan 2023 08:24:00 +0000 https://thebharat.net/%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%97%e0%a4%a3%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%80/ Caste Census: जाति जनगणना कराने के लिए बिहार सरकार द्वारा एलान के बाद अब केंद्र पर भी दबाव बनने लगा है, हालांकि केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं है. यानी अब तक 1931 वाली जनगणना के आधार पर ही देश में जनता की हर तरह से गिनती की जाती है. हमारे देश में अलग-अलग तरह […]

The post Caste Census: जाति जनगणना क्यों ज़रूरी है? किस बात से डरती हैं केंद्र सरकार? .. समझें पूरा गणित appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
Caste Census: जाति जनगणना कराने के लिए बिहार सरकार द्वारा एलान के बाद अब केंद्र पर भी दबाव बनने लगा है, हालांकि केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं है. यानी अब तक 1931 वाली जनगणना के आधार पर ही देश में जनता की हर तरह से गिनती की जाती है.

हमारे देश में अलग-अलग तरह की तमाम जातियां और उनकी उपजातियां हैंहालांकि इनकी संख्या कितनी हैंकिस जाति में कितने लोग हैंइनकी आर्थिक स्थिति क्या हैये फिलहाल निर्धारित नहीं है. साल 1931 से लेकर आज भी यही मुद्दा हमारे देश में विकास की ओर एक रोड़ा बना हुआ है. जिसमें सबसे ज्यादा विवाद पिछड़ा वर्ग को लेकर है.

इसी वर्ग की संख्या को पुख्ता करने के लिए अलग अलग राज्यकेंद्र पर दबाव बनाते हैंक्योंकि राजनीतिक पार्टियां अपने पक्ष में वोट की गोलबंदी करने के लिए जातिगत पहचान का सहारा सबसे अधिक लेती हैंइसके अलावा सभी जातियों के उत्थान और उनके वाजिब हक़ के लिए भी यह ज़रूरी होता है. लेकिन केंद्र की सत्ता में रहने वाली पार्टी कुछ-न-कुछ बहाना बनाकर हर बार इसे टाल जाती है.

बिहार सरकार ने राज्य में

Caste Census: जातीय जनगणना को लेकर सबसे ज्यादा सरगर्मी बिहार और उत्तर प्रदेश में रहती है. नारा भी बुलंद रहता है कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारीउसकी उतनी हिस्सेदारी. इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है तो वहां केंद्र से अलग जाकर यह मांग उठने का कोई सवाल ही नहीं हैलेकिन बिहार सरकार ने राज्य में जातीय जनगणना कराने का फैसला कर लिया है. और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है.

पहले सर्वदलीय बैठक और फिर कैबिनेट की मीटिंग में सबकुछ तय करने के बाद यह ऐलान कर दिया गया है कि बिहारकर्नाटक मॉडल की तर्ज पर सूबे में जातीय गणना को अंजाम देगा. इस महाअभियान पर सरकारी खजाने से 500 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे जो 9 महीने के भीतर सूबे की 14 करोड़ की आबादी की जातिउपजातिधर्म और संप्रदाय के साथ ही उसकी आर्थिक सामाजिक स्थिति का भी आकलन करेगा.

जनगणना क्या है?

भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है. इससे सरकार को विकास योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है. किस तबके को कितनी हिस्सेदारी मिलीकौन हिस्सेदारी से वंचित रहाइन सब बातों का पता चलता है. कई नेताओं की मांग है कि जब देश में जनगणना की जाए तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए. इससे हमें देश की आबादी के बारे में तो पता चलेगा हीसाथ ही इस बात की जानकारी भी मिलेगी कि देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है. सीधे शब्दों में कहे तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना होता है.

गणना में रोड़ा कौन?

साल 2010 में जब भाजपा सत्ता में नहीं थी. संसद के भीतर भाजपा के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर तर्क दे रहे थे. कह रहे थे कि अगर ओबीसी जातियों की गिनती नहीं हुई तो उनको न्याय देने में और 10 साल लग जाएंगे. इसके बाद जब भाजपा सत्ता में आईऔर तय समय के अनुसार 10 साल बाद 2021 में जनगणना होनी थीलेकिन नहीं हुई.

तब इसी साल ससंद में भाजपा से एक सवाल किया गया कि 2021 की जनगणना जातियों के हिसाब से होगी या नहींनहीं होगी तो क्यों नहीं होगी. सरकार का लिखित जवाब आया. कहा कि सिर्फ एससीएसटी को ही गिना जाएगा. यानी ओबीसी जातियों को गिनने का कोई प्लान नहीं है. कहने का मतलब ये है कि केंद्र की सत्ता में जो भी पार्टी होती हैवो जातीय जनगणना को लेकर आनाकानी करती ही है. विपक्ष में जब ये पार्टियां होती हैं तो जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाती हैं.

1931 में हुई थी जातिगत जनगणना 

Caste Census: भारत में आख़िरी बार ब्रिटिश शासन के दौरान जाति के आधार पर 1931 में जनगणना हुई थी. इसके बाद 1941 में भी जनगणना हुई लेकिन आंकड़े पेश नहीं किए गए. इसके बाद अगली जनगणना से पहले देश आज़ाद हो चुका था. यानी अब ये जनगणना 1951 में हुईलेकिन इस जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया.

कहने का मतलब ये है कि 1951 में अंग्रेजों की जनगणना नीति में बदलाव कर दिया गया जो कमोबेश अभी तक चल रहा है. इस जनगणना से पहले साल 1950 में संविधान लागू होते ही एससी और एसटी के लिए आरक्षण शुरू कर दिया थाकुछ साल बीते और पिछड़ा वर्ग की तरफ से भी आरक्षण की मांग उठने लगी.

आरक्षण के मामले में पिछड़ा वर्ग की परिभाषा कैसी होइस वर्ग का उत्थान कैसे होइसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया. काका कालेलकर आयोग ने 1931 की जनगणना को आधार मानकर पिछड़े वर्ग का हिसाब लगाया. हालांकि काका कालेलकर आयोग के सदस्यों में इस बात को लेकर बहस थीकि गणना जाति के आधार पर हो या आर्थिक आधार परयानी ये आयोग इतिहास में महज़ एक काग़ज़ भरने तक ही सीमित रह गया.

अब साल था 1978, और देश में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी वाली सरकार थी. इस सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक पिछड़ा आयोग बनाया. लेकिन साल 1980 के दिसंबर तक जब मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी तब तक जनता पार्टी की सरकार जा चुकी थी. मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर ही ज्यादा पिछड़ी जातियों की पहचान की.

मंडल आयोग की तरफ से ये भी कहा गया कि

Caste Census: कुल आबादी में 52 फीसदी हिस्सेदारी पिछड़े वर्ग की मानी गई. मंडल आयोग की तरफ से ये भी कहा गया कि पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए. हालांकि मंडल आयोग की सिफारिशों पर अगले 9 सालों तक कोई ध्यान नहीं दिया गया. लेकिन साल 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की उस सिफारिश को लागू कर दिया जिसमें पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की मांग की गई थी. वीपी सिंह के इस फैसले के बाद बवाल हुआमामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया.

जिसके बाद बारी थी 1992 में दिए गए इंद्रा साहनी के ऐतिहासिक फैसले की… जिसमें आरक्षण को सही माना गया लेकिन अधिकतम लिमिट 50 फीसदी तय कर दी गई. अब साल था 2006… केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अंर्जुन सिंह ने मंडल पार्ट 2 शुरू कर कियाऔर इस मंडल आयोग की एक दूसरी सिफारिश को लागू कर दिया गया जिसमें सरकारी नौकरियों की तरह सरकारी शिक्षण संस्थानोंजैसे यूनिवर्सिटी, आईआईटी, आईआईएम मेडिकल कॉलेज में भी पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए जाने पर मुहर लग गई. इस बार भी विवाद हुआ लेकिन सरकार अड़ी रही और ये लागू हो गया.

अब साल था 2010… कांग्रेस की सरकार थी और देश में जाति आधारित जनगणना की मांग उठने लगी. लालू प्रसाद यादवशरद पवारमुलायम सिंह यादवगोपी नाथ मुंडे जैसे नेताओं ने खूब ज़ोर लगाकर इसकी मांग उठाईहालांकि कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं थी. साल 2011 के मार्च महीने में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जातीय जनगणना पर अपनी बात रखी और ये हवाला दिया कि जो लोग इस जनगणना में काम करते हैंउनके पास इस तरह की ट्रेनिंग या अनुभव नहीं है. हालांकि लालू जैसे अपने सहयोगियों के दबाव में आकर कांग्रेस को जातीय गणना पर विचार करना पड़ा.

इस गणना का नाम दिया गया

Caste Census: प्रणव मुखर्जी की अगुआई में एक कमेटी बनीइसमें जनगणना के पक्ष में सुझाव दिए गए. इस जनगणना का नाम दिया गया सोशियो यानी इकॉनॉमिक एंड कास्ट सेन्सिस. सोशियो को पूरा करने में कांग्रेस ने 4800 करोड़ रुपये खर्च कर दिए. ज़िलावार पिछड़ी जातियों को गिना गया और इसका डाटा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को दिया गया. जिसके कई साल बाद तक इस डेटा पर कोई बात नहीं हुई. जब सरकार बदली तब थोड़ी बहुत सुगबुगाहट ज़रूर हुई और जातीय जनगणना के डेटा के क्लासिफिकेशन के लिए एक एक्सपर्ट ग्रुप बनाया गया. इस ग्रुप ने रिपोर्ट दी या नहींइसकी जानकारी अब तक नहीं आई है. कुल मिलाकर मोदी सरकार ने भी जाति के आंकड़ों को जारी करना मुनासिब नहीं समझा.

जातिगत गणना से क्यों डरती है केंद्र सरकार?

मान लीजिए जातिगत जनगणना होती है तो अब तक की जानकारी में जो आंकड़े हैंवो ऊपर नीचे होने की पूरी संभावना है. जैसे ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत से घट जाती है तो एक नया विवाद हो सकता हैऔर मान लीजिए यह प्रतिशत बढ़ जाता हैजिसकी पूरी संभावना है तो सत्ता और संसाधन में हिस्सेदारी की और मांग उठेगी सरकारें शायद इस बात से डरती हैं.

चूंकि आदिवासियों और दलितों के आकलन में फ़ेरबदल होगा नहींक्योंकि वो हर जनगणना में गिने जाते ही हैंऐसे में जातिगत जनगणना में प्रतिशत में बढ़ने घटने की गुंज़ाइश अपर कास्ट और ओबीसी के लिए ही है. भाजपा की पैठ अभी सवर्ण जातियों में ज्यादा है. आरक्षण का दायरा बढ़ने पर सवर्ण जातियां विरोध करेंगी और सरकार की परेशानी बढ़ेगी.

क्षेत्रीय पार्टियां क्या कहती हैं?

Caste Census: क्षेत्रीय पार्टियों में समाजवादी पार्टीराष्ट्रीय जनता दल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी समेत दर्जन भर से ज्यादा पार्टियों की मांग है कि बीजेपी ओबीसी की सही तादाद बताए और उसके बाद आरक्षण की 50 फ़ीसदी की सीमा को बढ़ाए. जानकार कहते हैं कि सही जनगणना होने से कोई नुक़सान नहीं होगा बल्कि तमाम जातियों के बारे में और उनकी स्थिति के बारे में पता चलेगाऔर उन्हें उनका आरक्षणसमाज में स्थानऔर अन्य संसाधनों में पूरा हक़ मिल सकेगा.

The post Caste Census: जाति जनगणना क्यों ज़रूरी है? किस बात से डरती हैं केंद्र सरकार? .. समझें पूरा गणित appeared first on Pravartak Bharat.

]]>
https://pravartakbharat.com/2023/01/08/898-xrkuks/feed/ 0