caste census data Archives - Pravartak Bharat https://pravartakbharat.com/tag/caste-census-data/ My WordPress Blog Fri, 20 Jan 2023 04:52:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 Caste Census: 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजानिक क्यों नहीं. पढ़े खास रिपोर्ट https://pravartakbharat.com/2023/01/20/888-ongsgt/ https://pravartakbharat.com/2023/01/20/888-ongsgt/#respond Fri, 20 Jan 2023 04:52:00 +0000 https://thebharat.net/2011-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%97%e0%a4%a3%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%86%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%a1%e0%a4%bc/ Caste Census: जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है. इसके कुछ ही महीने पहले साल 2021 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र […]

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Caste Census: जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है. इसके कुछ ही महीने पहले साल 2021 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र में केंद्र ने कहा था कि ‘साल 2011 में जो सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई, उसमें कई कमियां थीं. इसमें जो आंकड़े हासिल हुए थे वे ग़लतियों से भरे और अनुपयोगी थे.

भारत में 1931 में हुई पहली जनगणना

केंद्र का कहना था कि जहां भारत में 1931 में हुई पहली जनगणना में देश में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी वहीं 2011 में हुई जाति जनगणना के बाद देश में जो कुल जातियों की संख्या निकली वो 46 लाख से भी ज़्यादा थी. 2011 में की गई जातिगत जनगणना में मिले आंकड़ों में से महाराष्ट्र की मिसाल देते हुए केंद्र ने कहा कि जहां महाराष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अधिसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी में आने वाली जातियों कि संख्या 494 थी, वहीं 2011 में हुई जातिगत जनगणना में इस राज्य में कुल जातियों की संख्या 4,28,677 पाई गई.

साथ ही केंद्र सरकार का कहना था कि जातिगत जनगणना करवाना प्रशासनिक रूप से कठिन है. प्रोफ़ेसर सतीश देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं और एक जाने माने समाजशास्त्री हैं.

सतीश देशपांडे बताते हैं

“राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना तो देर सवेर होनी ही है, लेकिन सवाल ये है कि इसे कब तक रोका जा सकता है. राज्य कई तरह की अपेक्षाओं के साथ ये जातिगत जनगणना कर रहे हैं. कभी-कभी जब उनकी राजनीतिक अपेक्षाएं सही नहीं उतरती हैं, तो कई बार इस तरह की जनगणना से मिले आंकड़ों को सार्वजानिक नहीं किया जाता है.

कर्नाटक में की गई जातिगत जनगणना का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं

“ये जातिगत जनगणना काफी शिद्दत से की गई. तकनीकी तौर पर ये अच्छी जनगणना थी. लेकिन उसके आंकड़े अभी तक सार्वजानिक नहीं हुए हैं. ये मामला राजनीतिक दांव-पेंच में अटक गया. किसी गुट को लगता है उसे फ़ायदा होगा और किसी अन्य गुट को लगता है कि उनका नुक़सान हो जाएगा.

इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में कार्यरत प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण कहते हैं

“जो पार्टियां जातिगत जनगणना करके भी उसके आंकड़े सामने नहीं लाती हैं, तो उसकी वजह या तो कोई भय होगा या आंकड़ों में रहा कोई अधूरापन होगा. बहुत सारी जातियों ने जो सोशल मोबिलिटी ने हासिल की है, उनकी श्रेणियों को निर्धारित करना इतना आसान भी नहीं है. बहुत सारे विवादों से बचने के लिए भी शायद आंकड़े सामने नहीं लाये जाते होंगे.

प्रोफ़ेसर देशपांडे के मुताबिक़

Caste Census: ये कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा “लेकिन जातिगत जनगणना की मांग एक जायज़ मांग है और इस पर अमल किया जाना चाहिए. वे कहते हैं, “जातिगत जनगणना करवाने में जो तकनीकी अवरोध बताये जाते हैं वो सिर्फ़ अटकलबाज़ी है. जटिल चीज़ों की गणना हमारे सेन्सस के लिए कोई नई बात नहीं है. तकनीकी तौर पर ये पूरी तरह से संभव है. साल 2001 में सेन्सस कमिश्नर रहे डॉक्टर विजयानून्नी ने बड़े साफ़ तौर पर कहा है कि जो जनगणना करने का तंत्र है वो इस तरह की जनगणना करने में सक्षम है.

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Caste Census: जातिगत जनगणना: संविधान का उल्लंघन या वक़्त की ज़रूरत: पढ़े खास रिपोर्ट https://pravartakbharat.com/2023/01/20/889-rqshdy/ https://pravartakbharat.com/2023/01/20/889-rqshdy/#respond Fri, 20 Jan 2023 04:34:00 +0000 https://thebharat.net/%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a4-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%97%e0%a4%a3%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be/ Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला पिछले साल जून में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना करवाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी. दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा […]

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Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला पिछले साल जून में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना करवाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी. दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके दूसरे चरण में बिहार में रहने वाले लोगों की जाति, उप-जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी जानकारियां जुटाई जाएँगी.

लेकिन बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना को चुनौती देती हुई एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जिसके ऊपर पहली सुनवाई 20 जनवरी को मुक़र्रर की गई है. इस जनहित याचिका में बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना को रद्द करने की मांग की गई है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है क्योंकि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की पहली सूची में आता है और इसलिए इस तरह की जनगणना को कराने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है.

जातिगत जनगणना का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी. अंग्रेज़ों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज़ किया गया. आज़ादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया.

तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज़ किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि क़ानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.

मंडल कमीशन का गठन

हालात तब बदले जब 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी. इन दलों ने राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया. साल 1979 में भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था.

मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश

मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की. लेकिन इस सिफ़ारिश को 1990 में ही जाकर लागू किया जा सका. इसके बाद देश भर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए. चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए. आख़िरकार साल 2010 में जब एक बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इसके लिए राज़ी होना पड़ा.

Caste Census: 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई तो गई, लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े कभी सार्वजानिक नहीं किए गए. इसी तरह साल 2015 में कर्नाटक में जातिगत जनगणना करवाई गई. लेकिन इसमें हासिल किए गए आंकड़े भी कभी सार्वजानिक नहीं किए गए.

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